एक तरफ सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए तमाम कोशिशें कर रही है तो दूसरी तरफ मुश्किलें भी हैं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. पहले से ही टमाटर और प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं और अब अरहर दाल भी आम लोगों के लिए मुसीबत बन गई है. पिछले कुछ दिनों से सरकार तुअर दाल की कीमतों पर काबू पाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसकी कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं.
उपभोक्ता मामले विभाग (उपभोक्ता मामले विभाग) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 16 जुलाई तक अरहर दाल की कीमत पिछले एक साल के मुकाबले 32 फीसदी तक चढ़ गई है. पिछले एक हफ्ते के अंदर अरहर दाल काफी महंगी हो गई है. सिर्फ जून की बात करें तो इस दाल की कीमत में 7 फीसदी का इजाफा हुआ है.
दालों की कीमतें ऐसे समय में बढ़ी हैं जब बुआई का रकबा पहले ही कम हो गया है. मानसून में देरी और अधिक या कम बारिश के कारण अगले सीजन के लिए दालों की बुआई कम हो गई है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 9 जुलाई तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले साल के मुकाबले 25.8% कम रकबे में दालें बोई गई हैं। देश के कुल दाल उत्पादन में महाराष्ट्र और कर्नाटक की हिस्सेदारी 50% से ज्यादा है, लेकिन इस बार कम बारिश हुई है वर्ष।
क्या सरकार के प्रयास पर्याप्त हैं?
सरकार ने दालों की कीमतों पर काबू पाने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसके लिए सरकार ने 2023-24 के लिए मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत अरहर, उड़द और मसूर दाल के लिए 40% की खरीद सीमा को हटा दिया है। इससे किसानों से बिना किसी सीमा के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर दालों की सरकारी खरीद की जा सकेगी।
कृषि मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, सरकार को उम्मीद है कि आने वाले खरीफ और रबी सीजन में किसानों द्वारा अरहर, उड़द और मसूर दाल का रकबा बढ़ाया जाएगा। इस साल 2 जून को सरकार ने तुअर और उड़द की जमाखोरी पर रोक लगा दी थी, ताकि कीमतों पर काबू पाया जा सके.